मेरे इस लेख से अगर किसी को किसी भी प्रकार से ठेस पहुँचती है तो मुझे अज्ञानी और अल्पज्ञ समझ कर माफ करें।मै एक तुच्छ प्राणी हूँ बस उस महामाया जगदम्बा भवानी की प्रेरणा पा कर कुछ भाव आपके सामने प्रस्तुत करने की हिम्मत कर रहा हूँ।मेरा मक्सद यहाँ पर किसी भी व्यक्ति, तकनीक इत्यादि को ठेस पहुँचाने का कदापि नहीं है क्योंकि हर एक वस्तु, व्यक्ति इत्यादि उस महामाया का ही रूप है।
आजकल एक अनोखा ट्रेन्ड चल पडा है कि एनर्जी हीलिंग सिखाने वाले लोग चाहे वे रेकी, थेटाहीलिंग या किसी अन्य प्रकार की हीलिंग तकनीकें सिखाने वाले हों जिसमें प्रकाश के द्वारा हीलिंग की जाती है अपने शिष्यों को देवी-देवताओं पर से विश्वास हटा कर केवल प्रकाश पर ही सम्पूर्ण ध्यान टिकाने को कहते हैं (इस पंक्ति मे मैं भी कभी शामिल था)। धीरे-धीरे एनर्जी हीलिंग सीखने वाला व्यक्ति या तो इस नई तकनीक से पीछे हट जाता है या धार्मिक क्रियाओं को ही ढोंग समझने लगता है।इन विद्याओं को सीखने वाले व्यक्ति का दिमाग धार्मिकता के प्रति पूर्ण रूप से साफ कर दिया जाता है और उसके दिमाग मे यह भर दिया जाता है कि रेकी,थेटा,एल्फा,गामा,बीटा इत्यादि के सिवाय और कुछ नहीं है।रेकी, थेटाहीलिंग या अन्य उपचार की तकनीकें सिखाते ही उसे यह कह दिया जाता है कि अब वो पूर्ण हुआ और उसे अब कुछ और सीखने की जरूरत नही है।उसने सबसे ऊँची शक्ति से सम्पर्क जोड लिया है और वह जो चाहे सो पा सकता है।कुएँ के मेंढक की तरह उसके ज्ञान को बाँध कर सीमित कर दिया जाता है ताकि वह उनके हाथ से न निकल जाए। क्योंकि ऐसा होने पर उनकी आमदनी घट जाएगी।
यहाँ भारतवर्ष में रेकी, थेटाहीलिंग या अन्य उपचार पद्धतियाँ सिखाने वाले अपने आपको गुरू जी या गुरू माँ कहलवाने तक से पीछे नहीं हटते, चाहे उन्हें अपने शिष्य के प्रश्न पूछने भर से ही गुस्सा आ जाता हो और वे तिलमिला कर उसे बस केवल उनकी बातें सुनते रहने का निर्देश दे देते हों।क्या आपने इतिहास मे कभी किसी ऋषि-मुनि, साधु, तपस्वि, योगी या देवी-देवता विशेष को रेकी, थेटा या अन्य उपचार करते हुए सुना है या तस्वीरों मे देखा है? कि वे अपने पास आए सवाली या शिष्य के समक्ष या पीछे से रेकी की मुद्रा बनाते हुए रेकी भेज रहे हों? या अपने शिष्य का बिलीफ सिस्टम ठीक कर रहे हों? किसी वेद-पुराण, उपनिषद या श्रुति-स्मृति शास्त्र मे आपने रेकी या बिलीफ सिस्टम ठीक करने का वृतांत सुना है? यहाँ अगर हम थेटाहीलिंग की बात करें तो बीलीफ सिस्टम को चार लेवेल यानि स्तरों पर ठीक करना बताया जाता है। इन चारों स्तरों मे आत्मा का लेवल अथवा स्तर भी शामिल है।शास्त्र कहता है कि आत्मा ही परमात्मा है।अगर आत्मा ही परमात्मा का अंश है तो भला आत्मा मे कौन सा बिलीफ सिस्टम पैदा हो रखा है जिसे ठीक करना शेष रह गया है और वह भी एसा कि बार-बार ठीक करना पडता है? परमात्मा का अंश यानि आत्मा तो अजर-अमर है वह मृत्यु से परे है वह तो शरीर कपडों की तरह बदलती है उसे भला कोई क्या सिखाएगा?
भक्त ध्यानू ने कौन सा एल्फा, बेटा, गामा, थेटा, इत्यादि किया कि राजा अकबर के द्वारा ज्वाला जी माँ भगवती की शक्ति की परिक्षा लेने पर अकबर के द्वारा काटे गए घोडे का शीश जुडवा दिया। और जब अकबर ने ज्वाला जी मंदिर मे सोने का छत्र चढाने से पहले अहंकार वश शब्द बोले कि मेरे जैसा सवा मन सोने का छत्र आज तक तेरे दरबार पर किसी ने भी न चढाया होगा बस यह कहते ही वह सोने का छत्र नीचे गिर कर टूट गया तथा आज तक किसी अन्जान धातु मे बदल कर ज्वाला जी दरबार में पडा हुआ है वह किस एल्फा, बीटा, गामा, थेटा हीलिंग के कारण हुआ यह आज तक समझ मे नहीं आता?
काँगडा जी स्थित ज्वाला जी दरबार मे ज्वाला जी की नौ ज्योतें जो बिना तेल और बाती के युगों से जलती हुई आ रही है जिसे अकबर ने बुझाने के लिए सोने के मोटे-मोटे तवे चढवा कर बुझाने की चेष्टा की पर वो तवे फाड कर बाहर आ गई। फिर नहर के पानी का रुख ज्योत की तरफ मोड दिया गया पर ज्वाला तब और प्रचंड होकर तब भी जलती रही और आज भी लगातार जल रही है यह किस एल्फा, बीटा, गामा, थेटा हीलिंग के कारण हुआ यह एक अच्छा शोध का विषय बन सकता है। क्योंकि इतिहासकार एवँ साईन्टिसटों ने तो अपनी-अपनी रिपॉर्टों मे शोध करके घोषणा कर दी है कि हमे नहीं पता कि ज्वाला जी स्थान पर अग्नि कैसे प्रज्वलित हो रही है उसका स्रोत क्या है और जो छत्र है वह किस अंजान धातु का हो गया है।
एंशिएंट इंडियन हिस्ट्री यानि भारतीय प्राचीन इतिहास के छात्रों ने जरूर पढा होगा कि मुस्लिम इतिहासकार ने मैं उसका नाम भूल रहा हूँ ने लिखा है कि चिंतपूर्णी, ज्वालाजी एवँ नगरकोट इत्यादि पर नवरात्रों के समय हिंदू लोग जमा होते हैं और कई लोग अपना हाथ, कान, पैर इत्यादि को काट कर चढा देते हैं किसी का उसी समय, किसी का आधे-एक घण्टे मे, 2 या 4 या 12 और हद से हद 24 घण्टे मे वह अंग वापस आ जाता है। अब मैं यह सोच कर हैरान हूँ कि यह किस एल्फा, बीटा, गामा, थेटा हीलिंग के कारण एसा घटित हुआ होगा उत्तर दे पाना असम्भव जान पडता है।
पीर-फकीर, औलिया-पैगम्बर, जति-योगी इत्यादि जैसे कि वेद-व्यास, आदि शंकराचार्य, गोरखनाथ, ख्वाजा पीर, साईं बाबा, जीजस, जैसी जमात के तप से भरे हुए महापुरूष जो गुरू रूप में उपस्थित हैं ने पता नहीं कौन सा एल्फा, बीटा, गामा, थेटा सीखा जान नहीं पडता। ज्वाला जी मे तो गोरख डिब्बी मे माँ ज्वाला के प्रताप से गुरू गोरखनाथ ने पानी उबलवा दिया जो आज तक उबल तो रहा है पर ठण्डा पडा हुआ है। पर मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि यह उन्होने कौन से अल्फा, बीटा, गामा, थीटा की मदद से किया। मैं अज्ञानी तो नहीं समझ पा रहा हूँ पर आप में से अगर कोई समझा पाए तो मै आपका अति अभारी रहूँगा।
अगर बात करें शंकराचार्य की तो दुर्गा-चालीसा मे आता है
‘शंकराचार्य तप कीन्हो, काम औ क्रोध जीति सब लीन्हो।
निशदिन ध्यान धरो शंकर को, काहू काल नहीं सुमिरो तुम्को।
शक्ति रूप को मरम ना पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो।
यानि श्रीमद आद्य शंकराचार्य जी ने तप करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या इत्यादि को जीत लिया।वे हर समय भगवान शंकर जी का ही ध्यान किया करते रहे परन्तु आपके यानि शक्ति के मर्म को ना पहचानने के कारण किसी भी समय आपका सुमिरण नहीं कर पाए।इस संदर्भ में वृतांत आता है कि शंकराचार्य वेद-वेदांत के अकाट्ट्य विद्वान थे।वे काशी मे शंकर जी को सर्वोपरि स्थापित करने के उद्देश्य से पधारे। उनके केवल घोषणा मात्र से शिव को सर्वोपरि स्थान मिलकर शक्ति का वर्चस्व क्षीण हो जाता। परंतु महामाया के आगे किसकी चली है, जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उनकी माया मे घिरे रहते हैं तो हम जैसों की क्या औकात।उसने आदि शंकराचार्य को भी मोहित कर दिया।उनके घोषणा करने से ठीक पहले ही उन्हे दस्त लग गए और वे निढाल होकर काशी मे गंगाजी के किनारे गिर पडे अब उनमें इतनी भी शक्ति नहीं बची कि जल तक पी सकें। तब वो महामाया भगवती महात्रिपुर सुंदरी सोलह वर्ष की नई-नवेली दुल्हन का रूप धरकर गंगा जी से अपने सिर पर मटकों मे जल भरकर आचार्य शंकर के सामने उन्हें माया से मुक्त करने के उद्देष्य से गुजरी।शंकराचार्य जी की नजर उन पर पडी और उन्होंने कहा ‘हे देवि मेरे मुख मे जल डाल दीजिये’ तब महात्रिपुर सुंदरी ने उत्सुकतावश पूछा ‘क्यों! तुम खुद जल नहीं ले सकते?’ तब शंकराचार्य जवाब देते हैं ‘हे देवि! मुझमे शक्ति नहीं है’ नयनों में आश्चर्य का भाव लिए देवि कहती हैं ‘कौन! वो शंकर! जो कहता है कि शक्ति कुछ नहीं होती केवल शंकर ही होता है, अब उसकी शक्ति कहाँ चली गई’ और मुस्कुरते हुए वो अलोप हो गई। तुरंत ही शंकराचार्य जी को शक्ति के मर्म का ज्ञान हुआ और तब ‘शरणागत हुई कीर्ति बखानी जै जै जै जगदम्ब भवानी, भई प्रसन्न आदि जगदम्बा दई शक्ति नहीं कीन्ह बिलम्बा’ यानि शंकराचार्य जगदम्बा भवानी महात्रिपुर सुंदरी के शर्णागत हुए और उनकी कीर्ति का बखान किया। ऐसा करते ही देवि ने प्रसन्न होकर बिना देर लगाए उन्हें शक्ति प्रदान करके स्वस्थ कर दिया। अब यहाँ कौन सा अल्फा, बीटा, गामा, थीटा चला जान नहीं पडता।
रेकी अल्फा, गामा, बीटा,थीटा इत्यादि सिखाने वाले काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या रूपी रक्षसों पर विजय प्राप्त करने के बारे मे कुछ बता नहीं पाते बल्कि अपनी बात मनवाने के लिए चोकूरे, रेकी के सिम्बल इत्यादि का उपयोग करना सिखाते हैं, कि वही एक धर्मात्मा है। वे काम,क्रोध,अहंकार रूपी रक्षसों पर विजय प्राप्ति के बारे मे इसलिए नहीं बता पाते क्योंकि यह विषय उनकी पहुँच से बाहर है।
मैं अल्फा, बीटा, गामा, थीटा वालों से पूछ्ना चाहता हूँ कि आप लोग आतंकवाद को, कॉरप्शन को चोकूरे मार कर क्यों नहीं खत्म कर देते हैं? मैं जानता हूँ कि ऐसा सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि सब कुछ चाहे अच्छा है या बुरा उसी परमात्मा की माया का ही खेल है। बिना बुराई के आप अच्छाई की कल्पना भी नहीं कर सकते। अंत मे केवल यही कहकर इस लेख को विराम देता हूँ कि सब कुछ केवल महामाया का ही खेल है वही इस संसार को पैदा करती है, पालन करती है और अंत मे विनाश कर देती है।उसकी लीला को और गहराई से समझने के लिए ही उसकी प्रेरणा के द्वारा दुर्गा-हीलिंग की रचना हुई जिसमे यह सीखने का अवसर मिला कि निराकार परमात्मा और साकार परमात्मा मे लेश मात्र भी अंतर नहीं है।बल्कि अल्फा, बीटा, गामा, थीटा, इत्यादि उस महामाया की माया का एक सूक्ष्म सा अंश मात्र है। पूर्णता हासिल करने के लिए उससे दूर होने की जरूरत नहीं है बल्कि उससे और ज्यादा गहराई से जुडने की जरूरत है।
नोट:- श्री भूपेंद्र कुमार जी ध्यान एवँ साधनाओं मे मस्त रहते हैं, उनसे मिलने के इच्छुक कृप्या समय लेकर ही मिलें।अधिक जानकारी के लिए 9213099525 पर सम्पर्क करें या http://www.healingswithgod.com/
भक्त ध्यानू, ज्वाला जी और अकबर के छत्र की काहनी जानने के लिए इन लिंक्स पर क्लिक करें
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